कथा:
मित्रो आप सब ज्ञान के धनी है आप सब जानते हैं की लंकाधिपति रावण भगवान शिव का प्रिय भक्त था, वह इतना ऐश्वर्यशाली था की उसके शिव पूजन के लिए स्वयं इन्द्रदेव गंगाजी का जल लेके आते थे और सृष्टिकरता ब्रह्माजी वेद में अष्टाध्यायी का पाठ करते थे । पूजन के बाद रावण प्रार्थना रूपमें ताण्डव स्तोत्र का गान करता था, तब स्वयं शिवजी प्रकट होकर दर्शन दिया करते थे ।
पर आश्चर्य की बात यह है की वह सुखी नहीं था यह उसका मंत्र ही कहता है -
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्
हे! शिव मैं आपके मंत्रों का उच्च स्वर से अलाप करता हूँ, पर मैं सुखी कब होउँगा । अर्थात वह सुखी नहीं । तो वह किस सुख की कामना करता था ? वह सुख है "मुक्ती" का । इस राक्षस योनी से मुझे मुक्ती कब मिलेगी यही उसकी कामना थी ।
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