मूल, ज्येष्ठा व आश्लेषा बड़े मूल कहलाते है। अश्वनी, रेवती व मघा छोटे मूल कहलाते है। बड़े मूलो में जन्मे बच्चे के लिए 27 दिन के बाद जब चन्द्रमा उसी नक्षत्र में जाये तो शांति करवानी चाहिए ऐसा पराशर का मत भी है, तब तक बच्चे के पिता को बच्चे का मुह नहीं देखना चाहिए। जबकि छोटे मूलो में जन्मे बच्चे की मूल शांति उस नक्षत्र स्वामी के दूसरे 10वें या 19वें दिन में नक्षत्र में करायी जा सकती है।
यदि जातक के जन्म के समय चद्रमा इन नक्षत्रों में स्थित हो तो मूल दोष होता है। इसकी शांति नितांत आवश्यक होती है। जन्म समय में यदि यह नक्षत्र पड़े तो दोष होता है।
यदि जातक के जन्म के समय चद्रमा इन नक्षत्रों में स्थित हो तो मूल दोष होता है। इसकी शांति नितांत आवश्यक होती है। जन्म समय में यदि यह नक्षत्र पड़े तो दोष होता है।
गण्डमूल में जन्म का फल :
विभिन्न चरणों में दोष विभिन्न लोगो को लगता है, साथ ही इसका फल हमेशा बुरा ही हो ऐसा नहीं है।
अश्विनी नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में : पिता के लिए कष्टकारी
द्वितीय पद में : आराम तथा सुख केलिए उत्तम
तृतीय पद में : उच्च पद
चतुर्थ पद में : राज सम्मान
आश्लेषा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में : यदि शांति करायीं जाये तो शुभ
द्वितीय पद में : संपत्ति के लिए अशुभ
तृतीय पद में : माता को हानि
चतुर्थ पद में : पिता को हानि
मघा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में : माता को हानि
द्वितीय पद में : पिता को हानि
तृतीय पद में : उत्तम
चतुर्थ पद में : संपत्ति व शिक्षा के लिए उत्तम
ज्येष्ठा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में : बड़े भाई के लिए अशुभ
द्वितीय पद में : छोटे भाई के लिए अशुभ
तृतीय पद में : माता के लिए अशुभ
चतुर्थ पद में : स्वयं के लिए अशुभ
मूल नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में : पिता के जीवन में परिवर्तन
द्वितीय पद में : माता के लिए अशुभ
तृतीय पद में : संपत्ति की हानि
चतुर्थ पद में : शांति कराई जाये तो शुभ फल
रेवती नक्षत्र में चन्द्रमा का फल :
प्रथम पद में : राज सम्मान
द्वितीय पद में : मंत्री पद
तृतीय पद में : धन सुख
चतुर्थ पद में : स्वयं को कष्ट
अभुक्तमूल
ज्येष्ठा की अंतिम एक घडी तथा मूल की प्रथम एक घटी अत्यंत हानिकर हैं। इन्हें ही अभुक्तमूल कहा जाता है, शास्त्रों के अनुसार पिता को बच्चे से 8 वर्ष तक दूर रहना चाहिए। यदि यह संभव ना हो तो कम से कम 6 माह तो अलग ही रहना चाहिए। मूल शांति के बाद ही बच्चे से मिलना चाहिए। अभुक्तमूल पिता के लिए अत्यंत हानिकारक होता है।
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