भारतीय
संवत्सर का ग्यारवाँ चन्द्रमास और दसवां सूर्यमास "माघ" कहलाता है। इस महिने
में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघमास पड़ा। माघमास बहुत ही पवित्र
महीना माना गया है इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
माघ
मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सबकोई॥ देव
दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणीं॥ पूजहिं
माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥
माघ मास का स्नान पौष माह की पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है। तीर्थ नदियों में ब्रह्म महूर्त का स्नान करके भगवान गोविन्द को स्नान कराएँ। इत्र, केशर, चन्दन, मयूर मुकुट, पीताम्बर से सजाकर नाना प्रकार के पकवानों का भोग लगावें।
धूप, दीप, कपूर से आरती करें। गरीवों को दान, गाय को घास खिलाएँ। माघ मास में प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, तालाब, कुआं, बावड़ी आदि के शुद्ध जल से स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। पूरे माघ मास भगवान मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए नित्य ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देना अथवा मगद के लड्डू जिसके अंदर स्वर्ण या रजत छिपा दी जाती है, प्रतिदिन स्नान करके ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस मास में काले तिलों से हवन और काले तिलों से ही पितरों का तर्पण करना चाहिए। मकर संक्राति के समान ही तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना जाता है। माघ स्नान करने वाले पर भगवान माधव प्रसन्न रहते हैं तथा उसे सुख-सौभाग्य, धन-संतान तथा स्वर्गादि उत्तम लोकों में निवास तथा देव विमानों में विहार का अधिकार देते हैं। यह माघ स्नान परम पुण्यशाली व्यक्ति को ही कृपा अनुग्रह से प्राप्त होता है। माघ स्नान का संपूर्ण विधान वैशाख मास के स्नान के समान ही होता है।
व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:।
माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:॥
माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:॥
प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये।
माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानव:॥
माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानव:॥
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