शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

प्रदोष व्रत

"प्रदोष व्रत" प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है। यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है।सूर्यास्त से एक घण्ट पहले और दो घण्टे बाद के समय को प्रदोष का कहते हैं। प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते है और मनोकामना पूर्ण करते हैं। 

यह व्रत उपासक को धर्म, मोक्ष से जोड़ने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है। इस व्रत में भगवान शिव का पूजन किया जाता है। भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले क दुःख दूर होता है।

प्रदोष व्रत में दिन का भी एक अपना महत्व है -
  • सोमवार के दिन आरोग्य प्रदान करता है।
  • मंगलवार के दिन रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है।
  • बुधवार के दिन सभी कामना की पूर्ति होती है।
  • गुरुवार के दिन शत्रुओं का नाश होता है।
  • शुक्रवार के दिन सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति की प्राप्ती होती है।
  • शनिवार के दिन भय का नाश होता है।
  • रविवार के दिन यश​, कीर्ती, बल​, ओज में वृद्धि होती है।
प्रदोष व्रत करने के लिये उपासक को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान श्रीभोलेनाथ का स्मरण करें। उत्तर और पूर्व को ईशान कोण कहते हैं। ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थल का प्रयोग ही पूजा के लिए किया जाना चाहिए। पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें।

मण्डप के मध्य में रंगों से अष्टदल कमल बनाएं। मिट्टी के शिवलिंग का निर्माण कर पंचामृत से स्नान कराएं, चन्दन, चावल, पुष्प, बेलपत्र अर्पित करें। धूप, दीप, नैवेद्य के बाद आरती करें और "ॐ नमः शिवाय" इस पंचाक्षरी मंत्र का 108 की संख्या में जाप करें।

इस व्रत को 11 या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए। इसे उद्यापन के नाम से भी जाना जाता है।

व्रतौद्यापन के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।

मकर संक्रन्ति का महत्व

मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागनेके लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।
इस वर्ष मकर संक्रांति को लेकर लोगों में काफी दुविधा और भ्रम की स्थिति है की 14 जनवरी को मनाये या 15 जनवरी को ??  हम बतादें की इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की मध्य रात्रि 1:26 बजे अर्थात (15 जनवरी की सुबह) मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा। निर्णय सिंधु में संक्रांति काल से पहले के 6 घंटे और बाद 12 घंटे पुण्यकाल के लिए वर्णित हैं। चूंकि संक्रांति का काल रात्रिकाल में है, इसलिए 14 जनवरी का कोई महत्व नहीं रहेगा, विशेष पुण्य काल 15 जनवरी को दोपहर 1:30 तक रहेगा एवं सामान्य पुण्यकाल सूर्यास्त तक रहेगा। उदय काल में संक्रांति का पुण्यकाल श्रेष्ठ माना गया है। इसी दिन दान-पुण्य का महत्व माना गया है। इसलिए 15 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। 

बुधवार, 13 जनवरी 2016

पवित्र माघ मास​

भारतीय संवत्सर का ग्यारवाँ चन्द्रमास और दसवां सूर्यमास "माघ" कहलाता है। इस महिने में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघमास पड़ा। माघमास बहुत ही पवित्र महीना माना गया है इस विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सबकोई॥ देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणीं॥ पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥

माघ मास का स्नान पौष माह की पूर्णिमा से प्रारम्भ होता है। तीर्थ नदियों में ब्रह्म महूर्त का स्नान करके भगवान गोविन्द को स्नान कराएँ। इत्र​, केशर, चन्दन, मयूर मुकुट, पीताम्बर से सजाकर नाना प्रकार के पकवानों का भोग लगावें।
धूप, दीप, कपूर से आरती करें। गरीवों को दान, गाय को घास खिलाएँ। माघ मास में प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, तालाब, कुआं, बावड़ी आदि के शुद्ध जल से स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। पूरे माघ मास भगवान मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए नित्य ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देना अथवा मगद के लड्डू जिसके अंदर स्वर्ण या रजत छिपा दी जाती है, प्रतिदिन स्नान करके ब्राह्मणों को देना चाहिए। इस मास में काले तिलों से हवन और काले तिलों से ही पितरों का तर्पण करना चाहिए। मकर संक्राति के समान ही तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना जाता है। माघ स्नान करने वाले पर भगवान माधव प्रसन्न रहते हैं तथा उसे सुख-सौभाग्य, धन-संतान तथा स्वर्गादि उत्तम लोकों में निवास तथा देव विमानों में विहार का अधिकार देते हैं। यह माघ स्नान परम पुण्यशाली व्यक्ति को ही कृपा अनुग्रह से प्राप्त होता है। माघ स्नान का संपूर्ण विधान वैशाख मास के स्नान के समान ही होता है।
 व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:। 
माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:॥ 
प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये। 
माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानव:॥