मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागनेके लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं।
इस वर्ष मकर संक्रांति को लेकर लोगों में काफी दुविधा और भ्रम की स्थिति है की 14 जनवरी को मनाये या 15 जनवरी को ?? हम बतादें की इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की मध्य रात्रि 1:26 बजे अर्थात (15 जनवरी की सुबह) मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा। निर्णय सिंधु में संक्रांति काल से पहले के 6 घंटे और बाद 12 घंटे पुण्यकाल के लिए वर्णित हैं। चूंकि संक्रांति का काल रात्रिकाल में है, इसलिए 14 जनवरी का कोई महत्व नहीं रहेगा, विशेष पुण्य काल 15 जनवरी को दोपहर 1:30 तक रहेगा एवं सामान्य पुण्यकाल सूर्यास्त तक रहेगा। उदय काल में संक्रांति का पुण्यकाल श्रेष्ठ माना गया है। इसी दिन दान-पुण्य का महत्व माना गया है। इसलिए 15 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी।
इस वर्ष मकर संक्रांति को लेकर लोगों में काफी दुविधा और भ्रम की स्थिति है की 14 जनवरी को मनाये या 15 जनवरी को ?? हम बतादें की इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की मध्य रात्रि 1:26 बजे अर्थात (15 जनवरी की सुबह) मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा। निर्णय सिंधु में संक्रांति काल से पहले के 6 घंटे और बाद 12 घंटे पुण्यकाल के लिए वर्णित हैं। चूंकि संक्रांति का काल रात्रिकाल में है, इसलिए 14 जनवरी का कोई महत्व नहीं रहेगा, विशेष पुण्य काल 15 जनवरी को दोपहर 1:30 तक रहेगा एवं सामान्य पुण्यकाल सूर्यास्त तक रहेगा। उदय काल में संक्रांति का पुण्यकाल श्रेष्ठ माना गया है। इसी दिन दान-पुण्य का महत्व माना गया है। इसलिए 15 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी।
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