सनातनीय मानताओं में होली के पूर्व के आठ दिनों को होलाष्टक के नाम से जाना जाता है। होलाष्टक में शुभ कार्य
न किये जाने का शक्त निर्देश जोतिषियों के द्वारा दिया जाता है। असल में यह होलाष्टक
है क्या, आज हम अपनी HinduPujan वैद्यिक पूजा संस्थान के द्वारा आपको अवगत कराते हैं।
इस बार यह होलाष्टक 16 मार्च 2016 से 23 मार्च तक के समय का होगा।
शास्त्रीय परम्परा के अनुसार जब तक होलाष्टक समाप्त नहीं हो जाता तब तक शुभ कार्यों से बचना चाहिए व किसी भी प्रकार से कोई वस्तु चल-अचल संपत्ति आदि नहीं खरीदना चाहिए। मकान की नींव भी नहीं रखना चाहिए। इन आठ दिनों
में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र,
द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र
रूप लिए माने जाते हैं, जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
यही मुख्य
कारण हैं जो की शास्त्र और जोतिष दोनों होलाष्टक के इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य
करने को निषेध बताते हैं। साथ ही इस बार 23 मार्च 2016 फाल्गुन पूर्णिमा को चन्द्र ग्रहण निर्धारित है।
होलाष्टक
से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता भी है फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन भगवान शिव ने समाधी
भंग करने के अपराध में कामदेव को भस्म करदिया था। तब आठ दिनो तक कामदेव की पत्नी रती
ने तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। पूर्णिमा को महादेव शिव ने रती को बर्दान दिया
की श्रीकृष्ण के पुत्र रूप में कामदेव का पुनर्जन्म होगा। यह सुन रती के साथ संसार
भी प्रसंन्न होकर रंगोत्सव मनाया।
पूर्णिमा से आठ दिन पूर्व मनुष्य का मस्तिष्क अनेक सुखद व दुःखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्ट ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के क्षीण होने पर सहज मनोभावों की अभिव्यक्ति रंग, गुलाल आदि द्वारा प्रदर्शित की जाती है।हमारा आपसे
यही निर्देश है की होलाष्टक के दौरान शुभ कार्यों को करने से बचें, आपका मंगल हो।
Happy Holi..!!!
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