पुराण, शास्त्रों व धर्म ग्रंथों में पितरों के ऋण से मुक्त होने के लिए तथा वंश परम्परा की वृद्धि के लिए विवाह की अनिवार्यता पर बल दिया गया है । विवाह योग्य होते ही तरुण-तरुणियों के मन में "मेरा विवाह कब होगा" ? "क्या यह विवाह सफल होगा"? जैसे प्रश्न उठने लगते हैं।
विवाह के लिए पूछे जाने बाले प्रश्न..?- मेरी शादी कब तक होगी ?
- विवाह योग्य देखने के लिए गुरु का गोचर प्रमुखता से देखा जाता है।
- गोचर में गुरु जब भी सप्तम स्थान पर शुभ दृष्टि डालता है, या सप्तमेश से शुभ योग करता है या पत्रिका के मूल गुरू स्थान से गोचर में भ्रमण करता है तो विवाह योग आता है।
- इसके अलावा लग्नेश की महादशा में सप्तमेश-पंचमेश का अंतर आने पर भी विवाह होता है।
- सप्तम भाव में स्थित बलि ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में विवाह होता है ।
- लग्न अथवा चन्द्र से सप्तमेश ,द्वितीयेश, इनके नवांशेश, शुक्र व चन्द्र की दशाएं भी विवाह्कारक होती हैं ।
- सप्तम भाव या सप्तमेश को देखने वाला शुभ ग्रह भी अपनी दशा में विवाह करा सकता है ।
- उपरोक्त दशाओं में सप्तमेश ,लग्नेश ,गुरु व विवाह कारक शुक्र का गोचर जब लग्न ,सप्तम भाव या इनसे त्रिकोण में होता है उस समय विवाह का योग बनता है ।
- लग्नेश व सप्तमेश के स्पस्ट राशिः -अंशों इत्यादि का योग करें ,प्राप्त राशिः में या इससे त्रिकोण में गुरु का गोचर होने पर विवाह होता है ।
- मेरा जीवन साथी कैसा होगा ..?
लग्नेश एवम सप्तमेश का जन्म कुंडली के शुभ भावों में युति या दृष्टि सम्बन्ध हो अथवा दोनों एक-दूसरे के नवांश में हों तो पति-पत्नी का परस्पर प्रगाढ़ प्रेम होता है ।
- क्या मेरा वैवाहिक जीवन अच्छा रहेगा..?
- सप्तमेश ,सप्तम भाव ,कारक शुक्र तीनों शुभ युक्त ,शुभ दृष्ट ,शुभ राशिः से युक्त हो कर बलवान हों ,सप्तमेश व शुक्र लग्न से केन्द्र -त्रिकोण या लाभ में स्थित हों तो गृहस्थ जीवन पूर्ण रूप से सुखमय होता है ।
- लग्न का नवांशेश जन्म कुंडली में बलवान व शुभ स्थान पर हो तो गृहस्थ जीवन आनंद से व्यतीत होता है ।
- लग्नेश एवम सप्तमेश की मैत्री हो व दोनों एक दूसरे से शुभ स्थान पर हों तो दांपत्य जीवन में कोई बाधा नहीं आती।
- लग्नेश एवम सप्तमेश का जन्म कुंडली के शुभ भावों में युति या दृष्टि सम्बन्ध हो अथवा दोनों एक - दूसरे के नवांश में हों तो पति -पत्नी का परस्पर प्रगाढ़ प्रेम होता है ।
- सप्तम भाव में पाप ग्रह हों ,सप्तमेश एवम शुक्र नीच व शत्रु राशिः-नवांश में ,निर्बल ,पाप युक्त व दृष्ट ,६,८,१२वें भाव में स्थित हों तो विवाह में विलंब ,बाधा एवम गृहस्थ जीवन में कष्ट रहता है ।
- लग्नेश एवम सप्तमेश एक दूसरे से ६,८,१२ वें स्थान पर हों तथा परस्पर शत्रु हों तो गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता।
- ६,८,१२, वें भावों के स्वामी निर्बल हो कर सप्तम भाव में स्थित हों तो वैवाहिक सुख मँ बाधा करतें हैं ।
- सप्तम भाव से पहले एवम आगे के भाव में पाप ग्रह स्थित हों तो गृहस्थ जीवन में परेशानियाँ रहती हैं ।
- संतान सुख कब तक सम्भव है..?
- जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो ,उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है ।
- भाव स्थित राशि व उसका स्वामी ,भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है ।
- पति एवम पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए ।
- पंचम भाव से प्रथम संतान का ,उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए, उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है ।
- हमारी संतान कैसी होगी..?
- पंचम भाव का संबंध जब केतु या मंगल से होता है, उस अवस्था में गर्भपात, मृत संतान का पैदा होना या फिर संतान पैदा होते ही तुरंत मृत्यु को प्राप्त होती है।
- पंचमेश लग्न यदि नवम व एकादश भाव से संबंध रखता है तो उस अवस्था में उत्पन्न संतान आज्ञाकारी, धार्मिक प्रवृत्तियों वाली तथा अपने जीवन में उन्नति की तरफ अग्रसर रहने वाली होती है।
- पंचम भाव में जब गुरु बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति की संतान पिता से १०० गुना ज्यादा तरक्की करती है तथा ऐसी संतान को कुल दीपक कहा जाता है।
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