शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

Pitra shradha (पितृ पक्ष श्राद्ध)

जब हम अपने पितरों (पूर्वजों) के प्रति श्रद्धा पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तो वह श्राद्ध कहलाता है अपने पितरों को प्रसन्न करना, उन्हें तिलांजलि देना हमारा कर्तव्य है श्राद्ध करने का सीधा सम्बन्ध दिवंगत पारिवारिक जनों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना है इसे पितृ यज्ञ भी कहा जाता है, गरुड़ पुराण में कहा गया है, कि पितर पक्ष में पितर अपने घर आते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। हमारे पितर अन्न और जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं कुश और तिल से तर्पण करने पर पितर संतुष्ट होते हैं।

पितृ पक्ष पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन जल, जौ, कुशा, अक्षत, दूध, पुष्प आदि से उनका श्राद्ध सम्पन्न किया जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है तथा पूर्वज प्रसन्न होकर, आपके दीर्घायु तथा प्रगति की कामना करते है। एक मास में दो पक्ष होते है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष, एक पक्ष १५ दिन का होता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृ पक्ष के नाम से प्रचलित है। इन १५ दिनों में लोग अपने पूर्वजों।पितरों को जल देंते है तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते है। पितरों का ऋण श्राद्धों के द्वारा उतारा जाता है। पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पित्र-कर्म का विधान है। 

पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं :- 
एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध नाग बलि कर्म नारायण बलि कर्म त्रिपिण्डी श्राद्ध महालय श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म इसके अलावा प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु "नांदी-श्राद्ध" कर्म किया जाता है।

कैसे करें घर पर श्राद्ध कर्म :-
महालय श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त घर में क्या कर्म करना चाहिए। यह जिज्ञासा सहजतावश अनेक व्यक्तियों में रहती है। यदि हम किसी भी तीर्थ स्थान, किसी भी पवित्र नदी, किसी भी पवित्र संगम पर नहीं जा पा रहे हैं तो निम्नांकित सरल एवं संक्षिप्त कर्म घर पर ही अवश्य कर लें प्रतिदिन खीर (अर्थात्‌ दूध में पकाए हुए चावल में शकर एवं सुगंधित द्रव्य जैसे इलायची केशर मिलाकर तैयार की गई सामग्री को खीर कहते हैं) बनाकर तैयार कर लें। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित कर लें। उक्त प्रज्वलित कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दे दें। इसके नजदीक (पास में ही) जल का भरा हुआ एक गिलास रख दें अथवा लोटा रख दें। इस द्रव्य को अगले दिन किसी वृक्ष की जड़ में डाल दें। भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें। इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएँ फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें। पश्चात ब्राह्मणों को यथायोग्य दक्षिणा दें। 

क्या है श्राद्ध के मुख्य भोज्य पदार्थ :-
श्राद्ध के दिन लहसुन प्याज रहित सात्विक भोजन घर की रसोई में बनना चाहिए जिसमें  उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध घी बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जो बेल पर लगती है .जैसे ... तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी  कच्चे केले की सब्जी  ही भोजन मे मान्य है ।  आलू. मूली  वैगन  अरबी तथा जमीन के नीचे  पैदा होने वाली सब्जियां पितरो को नहीं चढ़ती है ।

श्राद्ध के लिए तैयार भोजन की तीन तीन आहुतियों और तीन तीन चावल के पिण्ड तैयार करने बाद प्रेत मंजरी के मंत्रोच्चार के बाद ज्ञात और अज्ञात पितरो को  नाम और राशि से सम्बोधित करके आमंत्रित किया जाता है । कुशा के आसन में बिठाकर गंगाजल से स्नान कराकर  तिल जौ और सफेद फूल और चन्दन आदि समर्पित करके चावल या जौ के आटे के पिण्ड आदि समर्पित किया जाता है । फिर उनके नाम का नैवेद्ध रखा जाता है। क्या कहते हैं प्राचीन शास्त्र, पुराण और स्मृतिग्रन्थ किसी भी मृतक के अन्तिम संस्कार और श्राद्धकर्म की व्यवस्था के लिए पारचीन वैदिक ग्रन्थ गरुडपुराण में कौन कौन से सदस्य पुत्र के नहीं होने पर श्राद्ध कर सकते है उसका  उल्लेख अध्याय .११ के श्लोक सख्या .११, १२, १३  और १४ में विस्तार से किया गया है जैसे-

पुत्राभावे वधु कूर्यात..भार्याभावे  च सोदनः !
शिष्यो वा ब्राह्मणः सपिण्डो वा समाचरेत !!
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृःपुत्रश्चः पौत्रके!
श्राध्यामात्रदिकम कार्य पु.त्रहीनेत खगः !!

अर्थात- ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू. पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है ! इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है ।  अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई  अथवा भतीजा  भानजा नाती पोता आदि कोई भी यह कर सकता है! इन सबके अभाव में शिष्य,  मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुलपुराहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है । इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्धतर्पण  और तिलांजली देकर मोक्ष कामना कर सकती है ।

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