गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

Daily puja Rules (दैनिक पूजा नियम)

नित्य के नियम, दैनिक क्रम के क्रम में ब्रह्म मुहूर्त में जग जाना चाहिये। अत्यन्त विवशताओं को छोड़कर अधिक समय तक सोना निषिद्ध है।  
करावलोकन (कर दर्शन​)
प्रात​: उठकर अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर निम्न श्लोक पढ़ते हुए अपने हथेलियों का दर्शन करें ।

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम॥


पृथ्वी से क्षमा प्रार्थना




करावलोकन के बाद माता पृथ्वी को नमस्कार करें।

समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले। 
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥

सामग्री
अब शौच क्रिया इत्यादि करके स्नान करें! साफ वस्त्र पहनकर पूजा के लिए सामग्री का अवलोकन करें ।
साफ ताजा जल, पुष्प​ (फूल​) एक छोटा कपड़े का टुकड़ा, चावल, चन्दन​, धूपबत्ती, कपूर, प्रसाद के लिए मेवा, मिश्री, गरुण घण्टी, शंख, कुशा, तुलसी, पंचपात्र, हवन धूप, छोटा हवन कुण्ड, गाय के गोवर का उपला या आम की लकड़ी ।

सावधानीयाँ
  1. चन्दन तांबे की कटोरी में न रखें।
  2. फूल पानी में न रखें, फूल टूटे न हों।
  3. पूजा के वर्तन तांबे या पीतल के हों।
  4. पूजा के समय लाल आसन (कम्बल​) में बैठें।
  5. पूर्वजों की तस्वीर हमेसा उत्तर की दिवार में लगाएं।
  6. पूजा के लिए हमेसा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें।
  7. घर में दो शंख रखने से कलह होता है! अत: एक शंख ही रखें।
  8. पूजा स्थान जहां देवी देवताओं के तस्वीर हैं वहां अपने पूर्वजों का तस्वीर न रखें।
  9. पूजा के समय साफ और धुले कपड़े पहनें! हो सके तो धोती, कुर्ते का उपयोग करें।
  10. पूजा में दो गणपती जी, तीन शालिग्राम​, चार शिव लिंग न रखें! इनकी संख्या एक ही रहे तो लाभ मिलता है।
पूजन प्रारम्भ
ॐ केशवाय नम​:, ॐ माधवाय नम​:, नारायणाय नम​:।
हाथ धुलें-  ऋषिकेशाय नम​:।

पहले शुद्ध घी का एक दीपक जलाकर, दीपक के नीचे पांच दाने चावल के रखकर चन्दन पुष्प से पूजा करें। अब अपने ईष्टदेव से प्रार्थना करें । हे देव मैं आपकी सेवा करने में असमर्थ हूँ, फिर भी अपने कर्मानुशार आपको स्नान कराने जा रहा हूँ । आप मेरी यह सेवा स्वीकार करें ।  ऐसा निवेदन करते हुए ईष्टदेव की प्रतिमा को तांबे के एक पात्र में स्थापित कर स्नान करायें । इस  समय द्वादशाक्षर या पंचाक्षर या नवाक्षर मंत्र को मुख से उच्चारित करते जायें । स्नान कराने के बाद एक छोटे साफ कपड़े से प्रतिमा को हल्के हाथ से साफ करें । अब प्रतिमा को यथा स्थान स्थापित करें । अब ईष्टदेव के चरणों में शुगन्धित चन्दन का लेप लगायें, चावल को पानी से साफ करके दो दानें उनके चरणों में अर्पित करें, इसके बाद पुष्प चरणों में अर्पित करें । 

अब शुगन्धित धूप जलाकर  सबसे पहले चरणों की ओर तीन बार ऊदर में तीन बार ह्रदय में तीन बार​और मस्तक में तीन बार घुमाएं फिर पांच बार सर्वांग में घुमाएं । यही क्रम कपूर जलाके करें, या जो दीपक जल रहा है उसी से यह क्रिया कर सकते हैं । अब हाथ धुलकर पीतल की कटोरी में मिश्री, मेवारखें उसमें तुलसी का एक पत्र रखें और देव को निवेदित करें । निवेदित करके भोग प्रसाद के चारो ओर जल की धार दें, साथ ही गरुण घण्टी की ध्वनी करें । बाद में शंख बजायें । इस प्रकार भोग लगाकर आप चालीसा, कवच​, सूक्त आदि का पाठ करें । यदि श्लोक के अक्षरों को पढ़ने में कठिनाई हो रही हो तो रामायणजी का नित्य पांच दोहे का पाठ कर सकते हैं। अब देव को जल निवेदित करें, अब हमारे ईष्टदेव की सेवा में जो इन्द्रादि देवता हैं उन्हें पुष्ट कराने के लिए हवन कुण्ड में उपले या आम की लकड़ियों के द्वारा आग जलायें, चन्दन पुष्प चावल से अग्नीदेव की पूजा करें । हवन साकल्यया धूप में काली तिल, जव, गुड़​, और घी, थोड़ा चावल मिलाकर आग में आहूती दें ।

ॐ गं गणपतये नम​: स्वाहा। ईष्टदेवताय नम​: स्वाहा। इन्द्राय नम​: स्वाहा। सूर्याय नम​: स्वाहा। सर्वदेवताभ्यो नम​: स्वाहा। अब अपने गुरु मंन्त्र से भी तीन आहूती दें । बाद जल एक आचमनी जलघुमायें ।  एक नया दीपक जलाकर देव की पुन: आरती उतारें ।आरती उतारने का अर्थ होता है; नजर या थकान को दूर करना, हमारे द्वारा हमारे ईष्टदेव को नजरन लगे या भोग पाने से जो उन्हें थकान हुई, उसे दूर करने के लिए हम आरती करते हैं या नजर उतारते हैं ।

आरती उतारने के बाद एक आचमनी जल घुमादें, और हाथ जोड़कर देव से क्षमा प्रार्थना करें । अब जलका पात्र लेकर सूर्यनारायण को जल दें और गायत्री मंत्र का उच्चरण करें । ऐसी पूजा की वीधी नित्य करने से आपमें और आपके परिवार में धन​, ऐश्वर्य​, कीर्ती की कोई कमी नहीं रहेगी । पूजा की इस क्रिया का अपने में अभ्यास लायें, साथ ही अपने माता-पिता और गुरू जनों का आशिर्वाद लें। नित्यौनके चरण स्पर्स करें, जिससे आपको एक न​ई उर्जा मिलेगी । गरीबों की  सहायता करें, अतिथीयों का स्वागत पहले जल देकर करें बाद में उनके आने का कारण पूछें, यही हमारे संस्कार हैं। 

कुछ निषेध बातें

  1. माता दुर्गा को दूब नहीं चढ़ाना चाहिए ।
  2. गणपती जी को तुलसी पत्र का भोग वर्जित है ।
  3. स्त्रियों को शंख नहीं बजाना चाहिए ।
  4. भगवान विष्णु को बिना तुलसी पत्र का भोग स्वीकार नहीं है ।
  5. स्त्रियाँ हनुमान चालीसा न पड़ें ऐसा किसी शास्त्र का आदेश नहीं, अत​: महिलाएं भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं ।
  6. भगवान विष्णु को चावल 
  7. नहीं चढ़ाना चाहिए ।
  8. सूर्यदेव को बेलपत्र नहीं चढ़ाना चाहिए ।
  9. माता दुर्गा को दूबा नहीं चढ़ाना चाहिए । 
  10. भगवान शिव और श्रीगणेश को तुलसी नहीं चढाया जाता है।​

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