नारियल को संस्कृत भाषा में श्रीफल कहा गया है, श्री का अर्थ होता है "लक्ष्मी" माता लक्ष्मी के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं होता इसलिए, शुभ कार्यों में नारियलावश्य रखा जाता है । ऐसी मान्यता है कि इससे शुभ कार्य में बाधा नहीं आती ।

नारियल ऊपर से सख्त आवरण से ढ़का होता है इसलिए बाहरी प्रदूषण का इस पर असर नहीं होता है, यह अंदर से निर्मल और पवित्र होता है । इसके अंदर जल भरा होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सफेद और जल बाले स्थान पर चन्द्र का बास होता है, चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है । यजु़र्वेद के पुरुष सूक्त में भी- "चन्द्रमा मनसो जातश:" आया है, किसी कार्य में सफलता के लिए मन का शान्त होना जरूरी है ।
वास्तुशास्त्र के अनुसार जलीय जीवों एवं जल युक्त वस्तुओं से वास्तु दोष दूर होता है । नारियल की शिखाओं में सकारात्मक उर्जा का भण्डार पाया जाता है, इन कारणों से शुभ कार्यों में नारियल कलश पर रख कर उसकी पूजा की जाती है, जल के देवता वरुण हैं और नारियल, कलश भी जलयुक्त होता है, अत: उसमें वरुण की पूजा भी की जाती है । पूजा के बाद कलश के जल से भक्तों को अभिषिक्त कर आचार्य आशिर्वाद देते हैं ।
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