सर्वजगन्नियन्ता
पूर्ण परमतत्त्व ही
‘गणपति- तत्त्व’ है; क्योंकि ‘गणानां पति: गणपति:।‘
‘गण’- शब्दसमूहका वाचक होता
है- गणशब्द: समूहस्य
वाचक:
परिकीर्तित:
।
समूहों का पालन करनेवाले परमात्मा
को ‘गणपति’ कहते हैं ।
मुद्गल
पुराण अनुसार भगवान
गणेश ने सत्कर्म
का नाश करने
वाले विघ्नासुर का
वध किया तभी से
उनका नाम विघ्नराज
हुआ और सभी
सत्कर्म कार्य से पूर्व
भगवान गणेश का
ध्यान किया जाने
लगा ।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं
विन्दति मानवा:। (श्रीमद्भगवतगीता
१८।४६) सत्कर्म से विशुद्धान्त:करण पुरुषको भगवतत्तत्त्व साक्षात्कार होता है । विघ्नासुर
पराजित हो श्रीगणेश की शरण ग्रहण लिया । अत: गणेशजीका नाम "विघ्नराज" हुआ
। उसी समय से गणेश-पूजन-स्मरणरहित जो भी सत्कर्म किया जाता है, उसमे विघ्नका प्रादुर्भाव होने लगता है । तबसे विघ्न
भगवान श्रीगणेशजीके ही आश्रित रहने लगा ।
- वेदों में गणपती
"तत्पुषाय
विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥”
(तैत्तिरीयारण्यक, प्रपाठक १०; नारायणोपनिषद्, अ० ५)
गणानां त्वा गणपति गुँ हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्। ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ न: श्रृण्वन्नूतिभि:
सीद सादनम्॥ (ऋग्वेद -२।२३।१)
‘नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो
नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो विरुपेभ्यो
विश्वरुपेभ्यश्च वो नमः ॥’ (शुक्लयजु.
१६।२५)
‘गणेश’-शब्दका
अर्थ है-‘जो समस्त जीव-जातिके ‘ईश’-स्वमी हों-गणानां
जीवजातानां य: ईश:-स्वामी स गणेश: ।’
शास्त्रीय
प्रमाणोंसे पंचदेवोंकी उपासना सम्पूर्ण कर्मोंमें प्रख्यात है। "शब्दकल्पद्रुम"
कोश में आया है -
आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं
च केशवम्। पञ्चदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्॥
पंचदेवोंकी
उपासनाका रहस्य पंचभूतों के साथ सम्बन्धित है। पंचभूतों में पृथ्वी, जल, तेज, वायु
और आकाश प्रख्यात हैं और इन्हीं के अधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ (गणेश), देवी,
रुद्र और केशव । ये पंचदेव भी पूजनीय प्रख्यात हैं। एक-एक तत्त्वका एक-एक देवता स्वामी
है-
आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव
महेश्वरी । वायो: सूर्य: क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिप: ॥
महाभूत__ ___ अधिपति
- क्षिति (पृथ्वी)_____________________ शिव
- अप (जल)________________________ गणेश
- तेज (अग्नी)_______________________ शक्ति
- मरुत (वायु)________________________ सूर्य
- व्योम (आकाश)_______________________ विष्णु
यह
विषय गम्भीरतासे मननीय तथा गवेषणीय है। भगवान शिवके पृथ्वीतत्त्वके अधिपति होने कारण
उनकी पार्थिव-पूजाका विधान है। भगवान विष्णु के आकाशतत्त्वके अधिपति होनेके कारण उनकी
शब्दों द्वारा स्तुतिका विधान है भगवती देवीके अग्नितत्त्वकाअधिपति होनेके कारण उनका
अग्निकुण्डमें हवनादिके द्वारा पूजाका विधान है । श्रीगणेशजीके जलतत्त्वके अधिपति होने
के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान है । मनुका कथन है- "अप एव ससर्जाऽऽदौ तासु बीजमवासृजत्।"
(मनुस्मृति १।८) इस प्रमाणसे सृष्टिके आदिमें एकमात्र वर्तमान जलके अधिपति श्रीगणेश
हैं । अत: जितने भी अनुष्ठान किये जायँ, उनके आरम्भमें गणेश-पूजन अत्यन्त आवश्यक है
। सूर्यके वायुतत्त्वके अधिपति होने के कारण प्राणकी रक्षाके लिए "सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च" (यजुर्वेद
७।४२) इस प्रमाणसे नमस्कारादिद्वारा पूजनका विधान है ।
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