शुक्रवार, 12 जून 2015

1. श्रीगणपती

गणानां त्वा गणपति गुँ हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्। 
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ न​: श्रृण्वन्नूतिभि: सीद सादनम्॥ (ऋग्वेद -२।२३।१)

श्रीगणेशका वास्तविक अर्थ क्या है इस पर विचार करना अति आवश्यक प्रतीत होता है-
"गण​" का अर्थ ह्ऐ- वर्ग, समूह या समुदाय । "ईश​" का अर्थ है स्वामी । गणदेवों के स्वामी होनेसे उन्हें "गणेश" कहते हैं । आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य "गणदेवता कहे गये हैं जो दशों दिशाओं की रक्षा करते हैं ।
“गण” शब्द रुद्रके अनुचरके लिये भी आता है । जैसा कि रामायणमें कहा गया है-
धनाध्यक्षसमो देव​: प्राप्तो हि वृषभध्वज​: । 
उमासहायो देवेशो गणैश्च बहुभिर्युत​: ॥

संख्याविशेषवाली सेनाका भी बोधक गण-शब्द है, इसके स्वामी गणेशजी हैं। "महानिर्वाणतन्त्र​" के अनुसार-
गणपस्तु महेशानि गणदीक्षाप्रवर्त्तक​: ।
ज्यौतिषशास्त्रमें अश्विनी आदि जन्म-नक्षत्रोंके अनुसार देव, मानव और राक्षस- ये तीन गण हैं । इन सब प्रकार के गणों के ईश श्रीगणेशजी हैं ।
तुलसीदास जी ने मानस में देवी पार्वती को श्रद्धा और शिव को विश्वास बताया है । किसी देव कार्य में हम जबतक श्रद्धा नहीं रखेंगे तब तक उस कार्य में विश्वास ही नहीं होगा और यदि विश्वास नहीं होगा तो श्रद्धा का होना भी असम्भव है । जब किसी देव कार्य में श्रद्धा और विश्वास होता है तो कार्य अवश्य सिद्ध हो जाता है । इसकारण भी शुभकार्य की सिद्धी अर्थात पूर्णता के लिए गणनाथ की पूजा की जाती है ।

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । 
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

विद्याप्राप्ती हो या विवाह, जन्म के समय हो या मृत्यु के निकट देश रक्षा के लिए संग्राम हो अथवा संकट का समय भगवान गणपती का ध्यान करने मात्र से विघ्न दूर हो जाते हैं इसमें तनिक भी संशय नहीं है । 


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