आज समाज इतना जागरुक है की अपनी संस्कृति, अपने संस्कार का त्याग कर पश्चिम सभ्यता की शरण ले रहे हैं । जिससे समाज में धार्मिक संकट के बादल गहराते जा रहे हैं । एक ओर स्वयं धर्म की बात करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर अपने ही धर्म के प्रतीक चिन्हों को हटाते जा रहे हैं । वह मात्र अज्ञानता के कारण, आज हम आपको सिर पर शिखा रखने का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्त्व बताने जा रहे हैं आषा है की आप पश्चिम संस्कृति का परित्याग कर अपने सनातनी संस्कृति के संस्कारों का स्वीकार्य करें ।
हमारे सनातनीय धर्म में जितने भी संस्कार या रीतियाँ ऋषि मुनियों द्वारा निर्मित की गई, आज उन सभी संस्कारों और रीतियों को विज्ञान भी स्वीकार करता है परन्तु दुर्भाग्य है कि हम हमारे ही संस्कारों त्याग कर रहे हैं और विदेशी पश्चिम समाज हमारे संस्कारो की ओर अकर्शित हो रहा है ।
शिखा तो हर एक सनातनीय का मूल पहचान है, आप यह जानें कि सिर के पीछे एक केन्द्रस्थान होता है प्राचीन काल में लोग भले ही पूरे सिर के बाल कटवा लेते थे लेकिन इस स्थान के बाल नहीं कटवाते थे । इस स्थान के बालों को शिखा के नाम से जाना जाता है। यह आवश्यक नहीं पौरोहित कार्य करने वाले ब्राह्मण ही शिखा, तिलक या उपवीत धारण करना चाहिए । उपवीत सभी द्विजातीय को धारण करना चाहिए, पर शिखा, तिलक धर्म के सभी वर्ग को धारण करना अनिवार्य बताया गया है ।
आज भी बहुत से लोग हैं जो शिखा रखते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि शिखा के बालों को गांठ लगाकर रखना चाहिए । बहुत से लोग फैशन के चक्कर में शिखा रखना पसंद नहीं करते और इसे कटवा लेते हैं । जबकि प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है कि शिखा कटने के मतलब सिर कटना होता है। किसी व्यक्ति को मृत्युदंड दिया जाता था लेकिन किसी कारण उसका सिर नहीं काटा जा सकता था तो उसकी शिखा काट दी जाती थी। शिखा कटे हुए व्यक्ति को दास माना जाता था।
यह तो शिखा के विषय में प्राचीन मान्यताओं की बात हुई। असल में शिखा रखने के बड़े ही फायदे हैं इसलिए शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य को शिखा जरुर रखना चाहिए। आइये जानें शिखा रखने के पांच बड़े फायदे ।
1. शिखा का सबसे पहला लाभ यह है कि यह व्यक्ति की बौद्घिक एवं स्मरण शक्ति को बढ़ाने का काम कारता है। आपने चाणक्य और कई अन्य प्राचीन विद्वानों की तस्वीरें देखी होगी जिसमें उनके सिर पर शिखा दिखी होगी। यह शिखा इसलिए रखते थे कि उनकी बौद्घिक क्षमता बनी रही।
2. एक पाश्चात्य वैज्ञनिक हुए सर चार्ल ल्यूक्स। इन्होंने शिखा के फायदे पर जब शोध किया तब बताया कि शिखा का जिस्म के उस जरुरी अंग से बहुत संबंध है जिससे ज्ञान वृद्घि और तमाम अंगों का संचालन होता है। जब से मैंने इस विज्ञान की खोज की है तब से मैं खुद चोटी रखता हूं ।
3. मस्तिष्क के भीतर जहां पर बालों आवर्त होता है उस स्थान पर नाड़ियों का मेल होता है। इसे अधिपति मर्म कहा जाता है । यानी यह बहुत ही नाजुक स्थान होता है । यहां चोट लगने पर व्यक्ति की तुरंत मृत्यु हो सकती है। शिखा इस स्थान के लिए कवच का काम करता है । यह तीव्र सर्दी, गर्मी से मर्मस्थान को सुरक्षित रखने के साथ ही चोट लगने से भी बचाव करता है।
4. मस्तिष्क में जहां शिखा स्थान है वहां शरीर की सभी नाड़ियों का मेल होता है। इसलिए इस स्थान का प्रभाव शरीर के सभी अंगों पर होता है। सुषुम्ना के मूल स्थान को मस्तुलिंग कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों- यानी कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों जैसे हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं।
5. मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों की शक्ति बढती हैं। शिखा का यह भी फायदा है कि यह व्यक्ति के मन को भी संयमित करता है। इसे बांधकर रखने से व्यक्ति अपनी काम भावनाओं पर भी नियंत्रण रख पाता है।
अब जरा विचार कीजिए हम इतने महत्त्वपूर्ण शिखा का धारण कर किस ओर जा रहे हैं । हम अपने संस्कार को स्वीकार न कर स्वयं अंधेरे में जा रहे हैं ।
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