शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

Sankashti vrat (संकष्टी उपवास)

हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। हालाँकि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है और अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पौष के महीने में पड़ती है। संकष्टी चतुर्थी अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं और इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। पश्चिमी और दक्षिणी भारत में और विशेष रूप से महाराष्ट्र और तमिल नाडु में संकष्टी चतुर्थी का व्रत अधिक प्रचलित है।

भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है। 

संकष्टी चतुर्थी का उपवास कठोर होता है जिसमे केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली श्रद्धालुओं का मुख्य आहार होते हैं। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं। 

उत्तरी भारत में माघ माह के दौरान पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही भाद्रपद माह के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। तमिल नाडु में संकष्टी चतुर्थी को गणेश संकटहरा या संकटहरा चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। 

कैसे करें संकष्टी गणेश चतुर्थी:
चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करें। श्रीगणेश की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें। तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें। फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराके विधिवत तरीके से पूजा करें। श्री गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्‍डू तथा मोदक का भोग लगाएं। ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है। तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें। इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान करें। तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपडे़ आदि का दान करें। 

विद्यार्थियों के लिए:
भगवान गणपती बुद्धी के प्रधान देवता हैं, भगवान गनपती की आराधना से ऐसे बच्चे जिनका मन पढाई में न लग रहा हो, याद बहुत करते है परंतु सब व्यर्थ हो जाता है । ऐसे बच्चे बुद्धिप्रदाता भगवान गणेश की आराधना करके अपना भविष्य उज्वल कर सकते हैं । इस अनुष्ठान में गणपती उपासना गणपत्युपनिषत् का 21 पाठ व हवन सम्मलित है ।

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