गुरुवार, 15 जनवरी 2015

मांगलिक होने का अर्थ क्या है?

मंगल की स्थिति से रोजी रोजगार एवं कारोबार मे उन्नति एवं प्रगति होती है तो दूसरी ओर इसकी उपस्थिति वैवाहिक जीवन के सुख बाधा डालती है।कुण्डली में जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष (मांगलिक​ दोष​​) लगता है । इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है।यह दोष जिनकी कुण्डली में हो उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करनी चाहिए ऐसी मान्यता है। सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है । इन भावों में स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि पहुँचाता है ज्योतिशास्त्र में कुछ नियम बताए गये हैं जिससे वैवाहिक जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है।

कोई जातक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसके मांगलिक होने का अर्थ है कि उसकी कुण्डली में मंगल अपनी प्रभावी स्थिति में है। शादी के लिए मंगल को जिन स्थानों पर देखा जाता है वे १,४,७,८ और १२ भाव हैं। इनमें से केवल आठवां और बारहवां भाव सामान्य तौर पर खराब माना जाता है। सामान्य तौर का अर्थ है कि विशेष परिस्थितियों में इन स्थानों पर बैठा मंगल भी अच्छे परिणाम दे सकता है। तो लग्न का मंगल व्यक्ति की पर्सनेलिटी को बहुत अधिक तीक्ष्ण बना देता है, चौथे का मंगल जातक को कड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि देता है। सातवें स्थान का मंगल जातक को साथी या सहयोगी के प्रति कठोर बनाता है। आठवें और बारहवें स्थान का मंगल आयु और शारीरिक क्षमताओं को प्रभावित करता है। इन स्थानों पर बैठा मंगल यदि अच्छे प्रभाव में है तो जातक के व्यवहार में मंगल के अच्छे गुण आएंगे और खराब प्रभाव होने पर खराब गुण आएंगे। मांगलिक व्यक्ति देखने में ललासी वाले मुख का, कठोर निर्णय लेने वाला, कठोर वचन बोलने वाला, लगातार काम करने वाला, विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होने वाला, प्लान बनाकर काम करने वाला, कठोर अनुशासन बनाने और उसे फॉलो करने वाला, एक बार जिस काम में जुटे उसे अंत तक करने वाला, नए अनजाने कामों को शीघ्रता से हाथ में लेने वाला और लड़ाई से नहीं घबराने वाला होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण गैर मांगलिक व्यक्ति अधिक देर तक मांगलिक के सानिध्य में नहीं रह पाता।

मंगलिक दोष 
१. कुण्डली में जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष  लगता है।
२. कुण्डली में चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष अथवा कर्क राशि के साथ योग बनाता है तो मंगली दोष लगता है।

मंगल भी निम्न लिखित परिस्तिथियों में दोष कारक नहीं होगा :
१. चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष, कर्क, वृश्चिक अथवा मकर राशि में हो और उसपर क्रूर ग्रहों की दृष्टि नहीं हो।
२. मंगल राहु की युति होने से मंगल दोष का निवारण हो जाता है।
३. लग्न स्थान में बुध व शुक्र की युति होने से इस दोष का परिहार हो जाता है।
४. कर्क और सिंह लग्न में लगनस्थ मंगल अगर केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी हो तो यह राजयोग बनाता है जिससे मंगल का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है।
५. वर की कुण्डली में मंगल जिस भाव में बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली में उसी भाव में सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है।
६. जन्म कुंडली के १,४,७,८,१२,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व ,उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का ,वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा।
७. यदि १,४,७,८,१२ भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो।

मंगल दोष के लिए व्रत और अनुष्ठान  
अगर कुण्डली में मंगल दोष का निवारण ग्रहों के मेल से नहीं होता है तो व्रत और अनुष्ठान द्वारा इसका उपचार करना चाहिए. मंगला गौरी और वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्रदान करने वाला है. अगर जाने अनजाने मंगली कन्या का विवाह इस दोष से रहित वर से होता है तो दोष निवारण हेतु इस व्रत का अनुष्ठान करना लाभदायी होता है.जिस कन्या की कुण्डली में मंगल दोष होता है वह अगर विवाह से पूर्व गुप्त रूप से घट से अथवा पीपल के वृक्ष से विवाह करले फिर मंगल दोष से रहित वर से शादी करे तो दोष नहीं लगता है.प्राण प्रतिष्ठित विष्णु प्रतिमा से विवाह के पश्चात अगर कन्या विवाह करती है तब भी इस दोष का परिहार हो जाता है.मंगलवार के दिन व्रत रखकर सिन्दूर से हनुमान जी की पूजा करने एवं हनुमान चालीसा का पाठ करने से मंगली दोष शांत होता है.कार्तिकेय जी की पूजा से भी इस दोष में लाभ मिलता है.महामृत्युजय मंत्र का जप सर्व बाधा का नाश करने वाला है. इस मंत्र से मंगल ग्रह की शांति करने से भी वैवाहिक जीवन में मंगल दोष का प्रभाव कम होता है.लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल अमंगल दूर होता है. आइए जाने कि कुंडली में मंगल दोष कैसे होता है। जब मंगल कुंडली के १, ४, ७, ८ या १२ वें स्थान पर हो तो यह एक मंगल दोष है और ऐसे जातक को मांगलिक कहा जाता है। हमारे समाज में मंगल दोष की उपस्थिति एक बहुत बड़ा डर या भ्रम बन गया है। यहां तक की ज्योतिष की लिखी हुई पुरानी किताबों में भी मंगल दोष के बारे में मतभेद हैं, क्या क्या अपवाद उपलब्ध हैं और निवारण के उपाय क्या हैं। जो भी हो मंगल दोष को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह वैवाहिक जीवन में समस्याएं पैदा कर सकता है। इसलिए विवाह से पहले मंगल दोष के लिए कुंडली मिलाना अनिवार्य है। यह भी जरुरी है कि कुंडली का विश्लेषण करें और यह पता लगाएं कि कुंडली में मंगल दोष है या नहीं।

१. यदि मंगल १ले भाव में रख कर ४, ७ और ८ भाव पर दृष्टि करता है। तो १ हाउस व्यक्ति के चरित्र  को दर्शाता है। इस कारण से व्यक्ति बहुत आवेगी और तुरंत गुस्सा करनेवाला हो सकता है। मंगल से दृष्ट ४ थां भाव ,घर, गाड़ी, अग्नि, रसायन या बिजली से दुर्घटना को दर्शाता है। दृष्ट ७ वें भाव में वैवाहिक जीवन में बाधायें आती हैं। ८ वें भाव में होने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है। इस प्रकार लग्न में मंगल का बैठना अशुभ माना जाता है।
२. यदि मंगल ४ थें भाव में बैठा है तो यह ४ के साथ ७, १० और ११ को भी प्रभावित करेगा। हमने ४ और ७ के प्रभावित प्रभावों को देखा है। प्रभावित १०वां भाव व्यवसाय में तेजी से बदलाव, अनिद्रा और पिता से तनाव का कारण हो सकता है। ११ वें भाव के प्रभावित होने से चोरी या दुर्घटना में हानि हो सकती है। इसलिए ४ थे भाव में मंगल बहुत अच्छा नहीं है।
३. यदि मंगल ७ वें भाव में हो तो यह १०, १ और२ को प्रभावित करता है। ७वां भाव वैवाहिक जीवन और जीवनसाथी का स्थान होता है। इसलिए यहां मंगल का होना वैवाहिक जीवन में कठिनाइयों का सूचक है। २ रे भाव में मंगल पारिवारिक सदस्यों के बीच विवाद पैदा करता है। मतभेद के कारण परिवार में ख़ुशी की कमी और समस्याएं आ सकती हैं। पैसे खो सकते हैं या खर्च की अधिकता हो सकती है। इसलिए ७ वें भाव में मंगल कठिनाइयों को बढ़ा सकता है।
४. यदि मंगल ८ वें घर में बैठा है तो यह ११, २ और ३ को प्रभावित करेगा। व्यक्ति आग, रसायन या बिजली से जानलेवा दुर्घटना का शिकार हो सकता है। यदि ३रां घर मंगल से दृष्ट है तो भाई बहन में तनाव होता है। यह व्यक्ति को बहुत कठोर और हठी बना देता है। इसलिए ८ वें घर में मंगल का होना अच्छा नहीं है।
५. अगर मंगल १२ वें भाव में हो तो यह ३, ६ और ७ भाव को प्रभावित करता है। १२ वां भाव व्यक्ति की आदतों को दर्शाता है। इससे व्यक्ति खर्च की अधिकता के बोझ तले दब जाता है। व्यक्ति को हाइपर टेंशन के साथ ही पेट से जुड़ी और खून से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए १२ हाउस में मंगल का होना भी अशुभ है। इस प्रकार मंगल दोष कई तरह की समस्यायों का कारण है। लेकिन ये बहुत मोटे दिशा निर्देश हैं। कई अन्य पहलू और कोण से अध्ययन की जरूरत है। कुडली की समग्र शक्ति, ग्रहों की शक्ति, उपयोगी पहलू और मंगल की शक्ति पर अवश्य विचार किया जाना चाहिए। 

मंगल दोष के अपवाद और निवारण:
१. यदि मंगल दुर्बल है।
२. यदि मंगल आच्छादित है।
३. यदि मंगल मेष या वृश्चिक में है।
४. यदि मंगल उच्च का है।
५. यदि मंगल सिंह के ८वें भाव में है।
६. यदि मंगल धनु के १२ वें भाव में है।
७. यदि मंगल लाभदायक है।
८. यदि उच्च लाभ ९ वें घर में बैठा हो।
९. यदि मंगल नवांश में अपनी राशि में हो ।
१०. यदि लड़का और लड़की दोनों मांगलिक हों ।
मंगल दोष वैवाहिक जीवन में समस्याएं लाता है और उसे बहुत प्रभावित करता है । लेकिन कुंडली मिलान और मंगल दोष का आकलन एक विशेषज्ञ ज्योतिष का काम है और यह लड़का लड़की दोनों की
कुंडली का सावधानीपूर्व विश्लेषक करने के बाद ही किया जा सकता है। 

यहां मंगल दोष निवारण के कुछ उपाय दिए गए हैं। 
ये मंगल दोष के प्रभाव को काम करेंगे और अच्छा परिणाम देंगे :
१. प्रतिदिन गणेशजी को गुड़ और लाल फूल चढ़ाएं और पूजा करते हुए १०८ बार यह मंत्र पढ़ें: ॐ गं गणपतये नमः।
२. यदि स्वस्थ हों तो हर चार महीने में एक बार मंगलवार को रक्तदान करें।
३. मंगल यन्त्र की स्थापना करें और मंगल प्रार्थना करें।
४. मंगलवार को सूर्योदय से लेकर अगले सूर्योदय तक का व्रत करें और इस अवधि में सिर्फ फल और दूध ही लें।
५. मंगल चंडिका मंत्र का नियमित जाप करें।
६. कुम्भ विवाह, विष्णु विवाह और अश्वत्थ विवाह कराएं।
७. प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ें।
८. चिड़ियों को मीठा खिलाएं।


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