सही दिशा (cardinal direction) में भवन
बनाएँ:
सही दिशा से तात्पर्य है कि भवन की स्थिति सही दिशा में हो । जैसा नीचे चित्र में दर्शाया गया है, विदिक दिशा में भवन बनाने पर विभिन्न दिशाओं से प्राप्त होने वाली ऊर्जाओं का प्रवाह अनुकूल अवस्था में प्राप्त नहीं होता है। वास्तु शास्त्र नियमों में इसी उद्देश्य से, मर्म स्थानों पर निर्माण से बचना निहित है । जिस तरह हमारे शरीर में इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी क्रियाशील रहती हैं उसी तरह से भवन में निम्नानुसार उपरोक्त नाड़ियाँ सही दिशा में भवन निर्वाण से क्रियाशील रहती हैं तथा हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालती हैं।
१. भूखंड में सही दिशा में भवन की स्थिति २. भूखंड एवं भवन की विदिक दिशा की स्थिति
भवन में योनि का निर्धारण:
योनि का शाब्दिक अर्थ होता है उत्पत्ति। भवन सूर्य उदय के संदर्भ में भवन की दिशा के निर्धारण को पूर्व योनि कहते हैं। भूखण्ड में प्रमुखत: ८योनि स्थितियाँ होती हैं, प्रत्येक स्थिति को उस विशेष दिशा की योनि कहते है, जिनका नाम उनके गुणों के आधार पर रखा गया है।
ऐसे भूखंड जिनकी कोने की स्थिति विदिक होती है । व्यास, घूमरा, कुकुर एवं खर, इनको शुभ नहीं माना गया है। उपरोक्त प्रत्येक योनि के अंकों की उस दिशा को निज योनि संज्ञा दी गई है। अत: भवन की परिधि नाप का जो योग होता है, उसमें ८ का भाग देने पर जो शेष बचता है, उसे योनि अंक मानकर व्यय का निर्धारण किया जाता है ।
वास्तु के आकार-प्रकार के नाप के सिद्धांत:
वास्तु सिद्धांतों का आधार मानव संरचना है, उसी तारतम्य में वास्तु के आकार-प्रकार भूमि का नाप एवं गणना का आधार मानव हस्त अपनाया गया है, जिसे पुरुष प्रमाण कहते हैं, इसे पर्व, हस्ता, दंड, रज्जू एवं योजन के नाम से जाना जाता है, मूर्ति निर्माण को ताल माप दंड का आधार बनाया गया है।
भवन, प्रासाद, देवालय आदि की परिधि के नाप को बहुत महत्व दिया गया है। भवन की ऊँचाई उसी अनुपात में निर्धारित होती है। मंदिर निर्माण का आधार मानव संरचना ही है।
पुरुष माप का रहस्य:
१. चाहे दोनों हाथ फैला लो, चाहे तीन क़दम चलकर दूरी तय करो, या नाप लो या बीस बित्ता नाप लो (एक बित्ता १२ अंगुल का होता है) १२० अंगुल का पुरुष नाप माना गया है । यह सिद्ध करता है कि मानव माप कितना सटीक है एवं एक निश्चित गणितीय माप में है । अनुकूल ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए मानव माप के अनुसरण का आधार यही है।
पुरुष-प्रमान का आधार:
पुरुष शरीर के दाएँ हाथ की बीच की अंगुली के पोर को अंगुल नाप माना गया है, चूँकि अंगुर नाप सभी का अलग-अलग होता है अत: उसे प्रमाणिक नाप करने के लिए यवा की अंगुली की पोर का आधार बनाया गया है। जिसे ८,७,६,यवा नाप के अनुसार उत्तमा, मध्यमा एवं अधमा नाप की श्रेणी में वास्तु सिद्धांत के आधार को निम्नानुसार प्रामाणिक माना गया है।
1तिल=1/64 अंगुला=0.47mm 1विसाती=12 अंगुला=360mm
1यवा=1/8 अंगुला=3.75mm 1हस्ता=24 अंगुला=720mm
1अगुला=1 अंगुला=30mm 1डंडा=4 हस्ता=2.88m
1पर्वा=3 अंगुला=90mm 8डंडा=1रज्जू=22.8m
1पदा =8अंगुला=240mm 10रज्जू=1योजन=280km
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