शनिवार, 3 जनवरी 2015

Part-2 (मन्त्र जप​) Mantra chanting

मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

शरीर को साफ रखने के लिए नित्य नहाना जरूरी है, उसी प्रकार कपड़े नित्य धोने आवश्यक हैं, घर की सफारि नित्य की जाती है। उसी प्रकार मन पर भी नित्य वातावरण में उड़ती-फिरती दुष्प्रवृतितयों की छाप पड़ती है, उस मलीनता को धोने के लिए नित्य "जप-उपासना" करनी आवश्यक है। "जप" के द्वारा "ईश्वर" को स्मृति-पटल पर अंकित किया जाता है। "जप" के आधार पर ही किसी सत्ता का "बोध" और "स्मरण" हमें होता है। स्मरण से आह्वाहन,से स्थापना और स्थापना से उपलब्धि का क्रम चल पड़ता है। ये क्रम लर्निग-रिटेन्शन-रीकाल-रीकाग्नीशनके रूप में मनौवेज्ञानिकों द्वारा भी समर्थित है।

"जप" करने से जो घर्षण प्रक्रिया गतिशील होती है, वो "सूक्ष्म शरीर" में उत्तेजना पैदा करती है और इसकी गर्मी से अन्तर्जत नये जागरण का अनुभव करता है। जो जप कर्ता के शरीर एवं मन में विभिन्न प्रकार की हलचलें उत्पन्न करता है तथा अनन्त आकाश में उड़कर सूक्ष्म वातावरण को प्रभावित करता है। इस ब्लॉग में हम केवल  सात्विक मन्त्रों"  के जप के संबंध में चर्चा करेंगें। 

विभिन्न प्रकार के मन्त्रों के लिए भिन्न-२ प्रकार की मालाओं द्वारा जप किये जाने का विधान है। गायत्री-मंत्र या अन्य कोरि भी सात्विक साधना के लिए तुलसी या चंदन की माला लेनी चाहिए। कमलगट्टे, हडिडयों व धतूरे आदि की माला तांत्रिक प्रयोग में प्रयुक्त होती हैं। 

जमीन पर बिना कुछ बिछाये साधना नहीं करनी चाहिए, इससे साधना काल में उत्पन्न होने वाली "विधुत" जमीन में उतर जाती है। आसन पर बैठकर ही जप करना चाहिए। "कुश" का बना आसन श्रेष्ठ है, सूती आसनों का भी प्रयोग कर सकते हैं। ऊनी, चर्म के बने आसन, तांत्रिक जपों के लिए प्रयोग किये जाते हैं। उस अवस्था में पालथी लगाकर बैठे, जिससे शरीर में तनाव उत्पन्न न हो, इसे "सुखासन" भी कह सकते हैं। यदि लगातार एक स्थिति में न बैठा जा सकें, तो आसन (मुद्रा) बदल सकते हैं। परन्तु पैरों को फैलाकर जप नहीं करना चाहिए। वज्रासन, कमलासन या सिद्धासन में बैठकर भी साधना की जा सकती है, परन्तु गृहस्थ मार्ग पर चलने वाले साधक व्यक्तियों को "सिद्धासन" में ज्यादा देर तक नही बैठना चाहिए।

जप के तीन प्रकार होते हैं-
(१) वाचिक जप-वह होता है जिसमें मन्त्र का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है।
(२) उपांशु जप-वह होता है जिसमें थोड़े बहुत जीभ व होंठ हिलते हैं, उनकी ध्वनि फुसफुसाने जैसी प्रतीत होती है। 
(३) मानस जप-इस जप में होंठ या जीभ नहीं हिलते, अपितु मन ही मन मन्त्र का जाप होता है। "जप साधना"की हम इन्हें तीन सीढि़यां भी कह सकते हैं। नया साधक ऽवाचिक जपऽ से प्रारम्भ करता है, तो धीरे-धीरे "उपांशु जप" होने लगता है, "उपांशु जप" के सिद्ध होने की स्थिति में "मानस जप" अनवरत स्वमेव चलता रहता है। 

जप जितना किया जा सकें उतना अच्छा है, परन्तु कम से कम एक माला (१०८ मन्त्र) नित्य जपने ही चाहिए। जितना अधिक जप कर सकें उतना अच्छा है। किसी योग्य सदाचारी, साधक व्यक्ति को गुरू बनाना चाहिए, जो साधना मार्ग में आने वाली विध्न-बाधाओं को दूर करता रहें व साधना में भटकने पर सही मार्ग दिखा सकें। यदि कोरि गुरू नहीं है तो कृपा करो गुरूदेव की नायी वाली उक्ति मानकर हनुमान" जी को ऽगुरू  मान लेना चाहिए।

प्रात:काल पूर्व की ओर तथा सायंकाल पश्चिम की ओर मुख करके जप करना चाहिए। "गायत्री मंत्र"उगते "सूर्य" के सम्मुख जपना सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि गायत्री जप, सविता (सूर्य) की साधना का ही मन्त्र है। एकांत में जप करते समय माला को खुले रूप में रख सकते हैं, जहां बहुत से व्यक्तियों की दृषिट पड़े। वहां ऽगोमुखऽ में माला को डाल लेना चाहिए या कपड़े से ढक लेना चाहिए।  माला जपते समय सुमेरू (माला के आरम्भ का बड़ा दाना) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। एक माला पूरी करके उसे मस्तक व नेत्रों पर लगाना चाहिए तथा पीछे की ओर उल्टा ही वापस कर लेना चाहिए।  जन्म एवं मृत्यु के सूतक हो जाने पर, माला से किया जाने वाला जप स्थगित कर देना चाहिए, केवल मानसिक जप मन ही मन चालू रखा जा सकता हैं। जप के समय शरीर पर कम कपड़े पहनने चाहिये, यदि सर्दी का मौसम है तो कम्बल आदि ओढ़कर सर्दी से बच सकते हैं। 

जप के समय ध्यान लगाने के लिए जिस जप को कर रहे उनसे संबंधित देवी-देवता की तस्वीर रख सकते हैं, यदि रिश्वर के निराकार रूप की साधना करनी है, तो दीपक जला कर उसका मानसिक ध्यान किया जा सकता है, दीपक को लगातार देख कर जप करने की क्रिया दीपक त्राटक कहलाती है। इसे ज्यादा देर करने से आंखों पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है, अत: बार-बार दीपक देखकर, फिर आंखे बन्द करके उसका मानसिक ध्यान करते रहना चाहिए। सूर्य के प्रकाश का मानसिक ध्यान करके भी जप किया जा सकता है। माला को कनिष्ठका व तर्जनी अंगुली से बिना स्पर्श किये जप करना चाहिये। कनिष्ठका व तर्जनी से जप, तांत्रिक साधनाओं में किया जाता है। 

ब्रह्ममुहुर्त जप, ध्यान आदि के लिए श्रेष्ठ समय होता है, हम शाम को भी जप कर सकते हैं, परन्तु रात्रि-अर्धरात्रि में केवल तांत्रिक साधनाएं ही की जाती हैं। गायत्री व महामृत्युंजय मन्त्र के जप प्रारम्भ में कठिन लगते हैं, परन्तु लगातार जप करने से जिव्हा इनकी अभ्यस्त हो जाती है और कठिन उच्चारण वाले मन्त्र भी सरल लगने लगते हैं।  

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