ओम का यह चिह्न ‘ॐ अद्भुत है। यह पुरे ब्रह्मांड को प्रदर्शित करती है। बहुत सारी आकाश गंगाएँ ऐसे ही फैली हुई है। ब्रह्म का मतलब होता है विस्तार, फैलाव और बढ़ना । ओंकार ध्वनि ‘ॐ को दुनिया में जितने भी मंत्र है उन सबका केंद्र कहा गया है। ॐ शब्द के उच्चारण मात्र से शरीर में एक सकारात्मक उर्जा आती है।हमारे शास्त्र में ओंकार ध्वनि के १०० से भी ज्यादा मतलब समझाई गयी है । कई बार ऐसे देखा गया है कि मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता है ,लेकिन उससे निकली हुई ध्वनि शरीर के उपर अपना प्रभाव डालती हुई प्रतीत होती है।
सनातन धर्म में जो धार्मिक विधिया होती है उन सभी के शुरुआत में ‘ॐ शब्द का ही उच्चारण किया जाता हा । ॐ शब्द का जब आप उच्चारण करते है उस समय भी ‘ओऽ पर अधिक बल दिया जाता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं । इस मंत्र के चमकार बहुत सरे है । प्रत्येक मंत्र के पहले ॐ शब्द का उच्चारण किया जाता है। योग साधना में इसका बहुत अधिक महत्त्व है।अगर इस शब्द का उच्चारण प्रतिदिन निश्चित अंतराल पे किया जाये तो सभी प्रकार के मानसिक रोग दूर हो जाते हैं। ॐ को अनाहत ध्वनि (नाद) कहते हैं जो प्रत्येक मनुष्य के अन्दर और इस ब्रह्मांड में सदैव गूँजता रहता है। इसके गूँजते रहने के पीछे कोई कारण नहीं है।
प्राचीन भारतीय धार्मिक आस्था की बात से चले तो ब्रह्मांड के रचना के पहले ही प्रणव मंत्र का उच्चारण किया गया था । इस मंत्र का अन्त नहीं है । सामान्य रूप से नियम यही कहता है कि ध्वनी उत्पन्न होने का कारण किसी की टकराहट होती है , लेकिन अनाहत ध्वनि को उत्पन्न करना संभव नहीं है।
अनाहत का मतलब किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीज़ों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है। साधारण मानव उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी व्यक्ति ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है । इसके बावजूद भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: शांत और ध्यान में होना बहुत ही जरूरी है। जो भी व्यक्ति उस ध्वनि को सुनने लगता है, वह ईश्वर से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है, ॐ का उच्चारण करते रहना ।
जो व्यक्ति ॐ और ब्रह्म के पास रहता है, वह नदी के पास लगे वृक्षों की तरह है जो कभी नहीं मुर्झाते। – हिन्दू नियम पुस्तिका। इस शब्द का सभी धर्मो तथा सभी सम्प्रदायों में बड़ा ही महत्त्व है। ॐ शब्द को हिन्दू धर्म का प्रतीक चिह्न ही नहीं अपितु इसे हिन्दू परम्परा का सबसे पवित्र शब्द शब्द मन जाता है।हिन्दू धर्म के सभी वेद मंत्रों का उच्चारण भी ॐ से ही प्रारंभ किया जाता रहा है । ॐ नाम में हिन्दू ,मुस्लिम या इसाई जैसी कोई भी बात नहीं है। यह सोचना कि ॐ किसी एक खास धर्म का चिन्ह है,यह बिलकुल भी गलत है, बल्कि ॐ शब्द तो उसी समय से चला आ रहा है जब कोई धर्म इस दुनिया में था ही नही उस समय सिर्फ एक ही धर्म था और वो थी मानवता । यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक मन जाता है। उदाहरण के तैर पर अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में ॐ शब्द को शामिल करते हैं , तो इसाई धर्म में भी इसी सी मिलते जुलते एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक दृष्टी से किया जाता है । मुस्लिम इसको आमीन कहते है तथा इस शब्द को यद करते है , बौद्ध इसे “ओं मणिपद्मेहूं” कह कर प्रयोग करते हैं। सिख समुदाय भी “इक ओंकार” अर्थात एक ॐ का गुण गाता है। यह अंग्रेज़ी का शब्द ओम्नि, जिसका अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाया जाता हैं ।
इन बातो और तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि ॐ किसी धर्म , मज़हब या सम्प्रदाय का नही बल्कि पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी प्रकार से जैसे कि हवा पानी रौशिनी समस्त मानव जाति के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय समुदाय और धर्म के लिए है । —
क्यों करते है ॐ का उच्चारण ?..~ हिंदू में ॐ शब्द के उच्चारण को बहुत शुभ माना जाता है. प्रायः सभी मंत्र ॐ से शुरू होते है। ॐ शब्द का मन, चित्त, बुद्धि और हमारे आस पास के वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ॐ ही एक ऐसा शब्द है जिसे अगर पेट से बोला जाए तो दिमाग की नसों में कम्पन होता है। इसके अलावा ऐसा कोई भी शब्द नही है जो ऐसा प्रभाव डाल सके। ॐ शब्द तीन अक्षरो से मिल कर बना है जो है “अ”, “उ” और “म”। जब हम पहला अक्षर “अ” का उच्चारण करते है तो हमारी वोकल कॉर्ड या स्वरतन्त्री खुलती है और उसकी वजह से हमारे होठ भी खुलते है।
दूसरा अक्षर “उ” बोलते समय मुंह पुरा खुल जाता है और अंत में “म” बोलते समय होठ वापस मिल जाते है। अगर आप गौर से देखेंगे तो ये जीवन का सार है पहले जन्म होता है, फिर सारी भागदौड़ और अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन। ॐ के तीन अक्षर आद्यात्म के हिसाब से भी ईश्वर और श्रुष्टि के प्रतीकात्मक है। ये मनुष्य की तीन अवस्था (जाग्रत, स्वपन, और सुषुप्ति), ब्रहांड के तीन देव (ब्रहा, विष्णु और महेश) तीनो लोको (भू, भुवः और स्वः) को दर्शाता है. ॐ अपने आप में सम्पूर्ण मंत्र है।
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