हिंदूओं में किसी की मृत्यु हो जाने पर उसके मृत शरीर को वेदोक्त रीति से चिता में जलाने की प्रक्रिया को अन्त्येष्टि क्रिया अथवा अन्त्येष्टि संस्कार कहा जाता है। यह हिंदू मान्यता के अनुसार सोलह संस्कारों में से अन्तिम (१६) संस्कार है।
व्यक्ति की मृत्यु के बाद किया जाने वाला षष्ठदश संस्कार. इसे अंतिम या अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहते हैं. धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मरे हुए शरीर की विधिवत क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं. शास्त्रों में इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है. जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है. प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है. उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष है . मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है. इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है।
अन्त्येष्टि को अंतिम अथवा अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहा जाता है। आत्मा में अग्नि का आधान करना ही अग्नि परिग्रह है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत ही सहज ढंग से इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है। जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है। प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है। उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष या निर्वाण है। मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है।
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