शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

मोहिनी अवतार: 13

भगवान विष्णु ने दैत्यों को मोहित करने के लिए यह अवतार लिया, आवेस अवतार का अर्थ कार्य की पूर्ती के लिए अवतार लेना, और कार्य पूर्ण होने पर अन्तर ध्यान होना इस आवेस अवतार में भगवान माता-पिता का सहारा नहीं लेते अपितु स्वयं यह रूप ग्रहण कर कार्य पूर्ण करते हैं।

२४ अवतारों में मात्र यही एक ऐसा अवतार है जिसमे भगवान विष्णु स्त्रीरूप स्वीकारते हैं । अपने नाम के अनुसार ही भगवान का यह रूप जगत को मोहित करने बाला था, और तो और ब्रम्हयोगी भगवान भोले नाथ भी इनके सुन्दर मोहिनी रूपसे नहीं बच पाये थे ।

इस अवतार का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत में भी आता है। समुद्र मंथन के समय जब देवताओं व असुरों को सागर से अमृत मिल चुका था, तब देवताओं को यह डर था कि असुर कहीं अमृत पीकर अमर न हो जायें। तब वे भगवान विष्णु के पास गये व प्रार्थना की कि ऐसा होने से रोकें। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत देवताओं को पिलाया व असुरों को मोहित कर अमर होने से रोका।

समुद्र मंथन से जब अमृत निकला और भगवान ने यह अमृत देवताओं को पिलाया, उस समय "राहू" चंद्रमा का रूप धारण करके अमृत पीने लगा। तब सूर्य और चंद्रमा ने उसके कपट-वेश को प्रकट कर दिया । यह देख भगवान श्रीहरि ने चक्र से उसका मस्तक काट डाला। उसका सर अलग हो गया और भुजाओं सहित धड अलग रह गया । 

इस प्रकार अमृत पीने से मस्तक कटजाने के बाद भी वह अमर हो गया । अत: मस्तक राहू और धड़ केतू के नाम से प्रकट हुआ । भगवान ने दोनों को नवग्रह में सम्मिलित कर देवताओं के समान पूजित होने का वर्दान दिया । कारण की वह इस घटनाक्रम में निर्दोष था, अपने जीवन को सुरक्षित करने के लिए प्रत्येक जीव कर्म करता है यह उनका स्वभाव है ।

इसी घटना क्रम में एक और कथा आती है की "महादेव शिव" भगवान विष्णु के इस मोहिनी रूप से मोहित हो उनका पीछा करने लगे । तभी भस्मासुर नामका एक दैत्य जो भगवान शिव से वर्दान प्राप्त कर उन्हें ही भस्म करना चाहता था । तब मोहिनीरूप धारी श्रीहरि ने नृत्य का माध्यम बना उस असुर का नास किया । इस प्रकार भोलेनाथ भगवान के इस मोहिनी रुप को प्रणाम किया, इस प्रकार भगवान श्रीहरि ने इस अवतार में देवताओं की रक्षाकर संसार के सृष्टी कार्य को आगे बढाया ।

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