शनिवार, 11 जुलाई 2015

पापमोचनी एकादशी

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को "पापमोचिनी एकादशी" कहते है, अर्थात पाप को नष्ट करने वाली। पापमोचनी एकादशी व्रत व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिये मोक्ष के मार्ग खोलती है। इस एकादशी को पापो को नष्ट करने वाली, एकादशी के रुप में भी जाना जाता है।
एकादशी व्रत विधि : 
भविष्योत्तर पुराणानुसार इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाएं। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें। संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भगवत कथा का पाठ अथवा श्रवण करें। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें। 
कथा:
भगवान श्री कृष्ण,  अर्जुन से कहते हैं- "राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है। राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नज़र ऋषि पर पड़ी तो वह उनपर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गये।

काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके हैं। उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय करने लगी।

मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था। अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया, जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी।
महत्व:
पापमोचनी एकादशी के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते है।

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