प्राचीन भारतीय विद्वानों के अनुसार इस संस्कार के दो प्रमुख उद्देश्य हैं। मनुष्य विवाह करके देवताओं के लिए यज्ञ करने का अधिकारी हो, और पुत्र उत्पन्न कर वंश वृद्धि कर पितृ ऋण से मुक्ती पाना ।
परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, यहाँ दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए कहा गया है ऽधन्यो गृहस्थाश्रमःऽ। सद्गृहस्थ ही समाज को अनुकूल व्यवस्था एवं विकास में सहायक होने के साथ श्रेष्ठ नई पीढ़ी बनाने का भी कार्य करते हैं।
विवाह दो आत्माओं का पवित्र बन्धन है। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं। एक-दूसरे को अपनी योग्यताओं और भावनाओं का लाभ पहुँचाते हुए गाड़ी में लगे हुए दो पहियों की तरह प्रगति-पथ पर अग्रसर होते जाना विवाह का उद्देश्य है। वासना का दाम्पत्य-जीवन में अत्यन्त तुच्छ और गौण स्थान है, प्रधानतः दो आत्माओं के मिलने से उत्पन्न होने वाली उस महती शक्ति का निमार्ण करना है, जो दोनों के लौकिक एवं आध्यात्मिक जीवन के विकास में सहायक सिद्ध हो सके।
परन्तु आज वह समय नहीं रहा, आज सब जाति बन्धन से मुक्त होकर भी विवाह करते हैं जोकि उचित नहीं कहा जा सकता । विवाह के लिए एक वैद्यिक व्यवस्था बताई गई है, "कन्या" से वर (लड़का) हमेंसा उच्च वर्ण का ही होना चाहिए। यदि वर (लड़का) निम्न वर्ण है और कन्या उच्च वर्ण की है, तो इनसे होने बाली संतान वर्णसंकर कहलाती है ।
कौन से आठ प्रकार के विवाह :
१. ब्रह्म विवाह
यह सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित विवाह माना जाता है। दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना "ब्रह्म विवाह" कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है। आज का "आर्रङेद ंअर्रिअगे" ऽब्रह्म विवाहऽ का ही रूप है।
२. दैव विवाह
किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना "दैव विवाह" कहलाता है। या यूँ समझें कि कन्या का पिता यज्ञ करने वाले पुरोहित को अपनी सुकन्या का हाथ देता था । यह विवाह भी प्राचीन काल में आदर्श विवाह का रूप माना जाता था पर आज इसका प्रचलन नहीं है ।
३. आर्श विवाह
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना "अर्श विवाह" कहलाता है। यह विवाह प्राचीन काल में ऋषियों की गृहस्थ बनने की इच्छा जाग्रत होने पर विवाह की स्वीकृत पद्धति थी, ऋषी अपने पसंद की कन्या को गाय बैल का जोड़ा भेंट करता था । कन्या के पिता को रिस्ते की स्वीकृति होने पर कन्या का दान करता था । परन्तु अस्वीकृति होने पर भेंट सादर लौटा दिया जाता था ।
४. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना "प्रजापत्य विवाह" कहलाता है।
५. गंधर्व विवाह
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना "गंधर्व विवाह" कहलाता है। यह आधुनिक प्रेमविवाह का पारंपरिक रूप है परन्तु इसे आदर्श विवाह नहीं माना जाता ।
६. असुर विवाह
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना "असुर विवाह" कहलाता है।
७. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना "राक्षस विवाह" कहलाता है। यह विवाह आदिवाशियों के हरण विवाह का ही एक रूप है। एक कबीला दूसरे कबीले से मैत्री करने के उद्देश्य से जीते हुये कबीले की लड़की को देते थे ।
८. पैशाच विवाह
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना "पैशाच विवाह" कहलाता है।
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