श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस वर्ष कामिका एकादशी दिनाँक 10th अगस्त 2015 को सोमवार के दिन मनाई जाएगी । कामिका एकादशी विष्णु भगवान की अराधना एवं पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय होता है।
व्रत समय :
एकादशी तिथि का प्रारम्भ दिनाँक 09th अगस्त 2015 को 16:58 बजे होगा, और एकादशी तिथि की समाप्ति दिनाँक 10 th अगस्त 2015 को 16:45 बजे है ।
पारण (व्रत तोड़ने का) समय :
दिनाँक 11th को 06:22 से 08:54 तक है । पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय 16:59 तक है ।
कामिका एकादशी पूजा-विधि :
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्रीविष्णु विग्रह का पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
व्रत का महत्व :
कामिका एकादशी उत्तम फलों को प्रदान करने वाला व्रत है। इस एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु की पूजा करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन तीर्थ स्थलों में विशिष स्नान दान करने की प्रथा भी रही है इस एकादशी का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान होता है। इस एकादशी का व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करके भगवान श्रीविष्णु को भोग लगाना चाहिए। आचमन के पश्चात धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती करनी चाहिए।
कामिका एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी कष्ट दूर होते है। व्यक्ति पाप रूपी संसार से उभर कर, मोक्ष की प्राप्ति करने में समर्थ हो पाता है। इस एकादशी के विषय में यह मान्यता है, कि जो मनुष्य़ सावन माह में भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके द्वारा गंधर्वों और नागों की सभी की पूजा हो जाती है। लालमणी मोती, दूर्वा आदि से पूजा होने के बाद भी भगवान श्री विष्णु उतने संतुष्ट नहीं होते, जितने की तुलसी पत्र से पूजा होने के बाद होते है।
इस व्रत में क्या खायें :
चावल व चावल से बनी किसी भी चीज के खाना पूर्णतया वर्जित होता है। व्रत के दूसरे दिन चावल से बनी हुई वस्तुओं का भोग भगवान को लगाकर ग्रहण करना चाहिए। इसमें नमक रहित फलाहार करें। फलाहार भी केवल दो समय ही करें। फलाहार में तुलसी दल का अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए। व्रत में पीने वाले पानी में भी तुलसी दल का प्रयोग करना उचित होता है।
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